आधुनिक प्रबंध के दृष्टिकोण से किसी भी योजना के कार्यान्वन के लिए ५ मूलभूत बातें होनी जरूरी है : योजना की रूपरेखा, योजना का प्रबंधक, उपयुक्त उपकरण,कार्य पद्धति व सबसे महत्वपूर्ण बात है भाग्य . भाग्य पर ही योजना की सफलता तथा असफलता निर्भर करती हिया. इसका मतलब यह हुआ की उचित कर्म के साथ भाग्य का संयोजन सफलता देता है.
अष्टम स्थान का प्रयोग – पूर्व जन्म की वृत्ति, व्यवसाय आदि के लिए होता है .
कोई व्यक्ति इस संसार में कहा से आया है, ये जानने के लिए सूर्य या चन्द्र का द्रेश्कान देखा जाता है, इसमे गुरु स्वर्ग या उच्च लोको का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र व शुक्र पित्र्लोक या चन्द्र लोक का . सूर्य व मंगल इस अनित्य संसार का. बुध और शनि निम्न योनियों का.
इसी प्रकार गुरु का ६ ,७,८ ,१० में होना मृत्यु के बाद उच्च लोको की प्राप्ति का संकेत देता है. यदि ६, ७, ८ में कोई ग्रह न हो तो वहा के स्वामियों और उनके द्रेश्कानो को देखना चाहिए.
इस प्रकार वर्तमान जीवन का भी ज्योतिष शास्त्र में विवाचन किया गया है . यथा पूर्व जीवन के शापों का अध्यन करने के लिए एनी ग्रहों के साथ मांडी और ५ स्थान का प्रयोग होता है , उदाहरनार्थ यदि ऐसे शापों में सूर्य का योग हो तो पिता का शाप होता है , चन्द्र का योग होने पर माता का शाप, राहू का योग होने पर सर्प दोष होता है.
किसी भी बच्चे के जीवन के लिए पहले के ४ वर्ष माता के दुष्कर्मो के कारण, बाद के ४ वर्ष पिता के दुष्कर्मो के कारण और बाद के ४ वर्ष उसके स्वयं के दुष्कर्मो के कारण घटक हो सकते हैं.
प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का स्वरुप भी उसके पूर्वजन्म के कर्मो के आधार पर ही निर्धारित होता है. मृत्यु का यह स्वरुप कैसा भी हो सकता है.
अब प्रश्न यह उठता है की आख़िर हम इनसे कैसे बचे…
इसका सबसे सरल हल ये है की पूर्ण समर्पण भावः से गुरु चरणों में समर्पित हो जाया जाए , पर क्या यह सम्भव है? शायद नही क्यूंकि यहाँ भी हमारे बुरे कर्म हमारा पीछा नही छोड़ते . और हम सदगुरुदेव रुपी गंगा के समीप जाकर भी अवगाहन से वंचित ही रहते हैं . वर्तमान में शक्तिपात के रूप में अपनी दिव्व्य साधना शक्ति को प्रदान कर समस्त पापो व दोषों को भस्मीभूत कर देने वाले सद्गुरु के प्रति भी हम शंका से भरे रहते हैं . और यदि आप कहेंगे की ऐसा नही है तो मेरे भाई मुझे एक बात बताओ की यदि ऐसा नही है और आपने सदगुरुदेव से दीक्षा ली है तब भी आप परेशां क्यूँ हो , क्या आप दीक्षा के बाद एक मर्यादित जीवन जीते हैं .
वास्तव में हम लोगो में दो अलग अलग कारणों से दीक्षा लेने वाले व्यक्ति हैं:
जीवन की तीव्र झुलसन में छाँव की तलाश करते हुए अमृत पान के लिए गुरुदेव के चरणों में बीतना वाले औए किसी समस्या से परेशां होकर मात्र उसके हल के लिए दीक्षा लेने वाले. इसमे दूसरे कारण वालो के साथ दिक्कते ज्यादा हैं क्यूंकि उन्हें लगता है की दीक्षा ले ली बस अब सब ठीक हो जाएगा पर वो यह भूल जाते हैं की दीक्षा आपके उद्देश्यों के लिए मात्र आपका मार्ग प्रशस्त करती है , मंजिल तक पहुचने के लिए आपको साधना करते हुए पहुचना होता है , मतलब आप जितनी तल्लीनता के साथ साधना करोगे आपके कार्य में सफलता भी वैसी ही मिलेगी. सफलता मिलेगी इसमे कोई संदेह नही.
पहले कारण वालो के लिए कुछ कहना ही नही बचता क्यूंकि वे तो सदगुरुदेव की अंगुली थामकर लगातार गुरु निर्देशों का पालन करते हुए अपनी मंजिल के समीप पहुच ही जाते हैं और पहुचे भी क्यूँ नही आख़िर सदगुरुदेव ही उनकी मंजिल जो हैं. और ऐसे शिष्यों को सदगुरुदेव पूर्णता तक पहुचाते ही हैं.
जब हम पूर्ण समर्पण से दीक्षा ग्राहम करते हैं तो कैसा भी तंत्र परयोग , कैसा भी ग्रह दोष , कैसा भी पाप हमें आक्रान्त नही कर पाटा क्यूंकि गुरुमंत्र रुपी तलवार और साधना की धार से उस बढ़ा को समाप्त होना ही होता है.
मेरे भाइयों यह हमारा सौभाग्य है की आज भी हमारे बीच में वही परम्परा उपस्थित है , ऐसा न हो की कल गुरु देव का मानस ही बदल जाए और हम हाथ मलते ही रह जाए . यदि अब भी हम नही चेते तो अपनी प्रारब्ध की जकड में जकडे हुए फिर दुर्भाग्य शाली जीवन जियेंगे और अपने आप को कोसते रहेंगे. दीक्षा लेने के लिए बढिए क्यूंकि संशय युक्त रहे तो अवसर और सौभाग्य दोने ही निकल जायेंगे. अब मर्जी है आपकी आख़िर जीवन है आपका।
****आरिफ****
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8 comments:
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत सुंदर जानकारी आपका लिखने पढने की दुनिया में स्वागत है
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jai gurudev
bahut urja yukt baten kahi aapne
i love your blog
Yes this is full of inspiration keep doing such nice work and really you are going to open eyes of many person. Full of motivation.
Jai Gurudev
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