Saturday, December 27, 2008

आपस की बात


विगत दिनों मेरे पास काफी संदेश और काल्स यह जानने के लिए आए थे की पारद क्रिया से सम्बंधित प्रमाणिक सामग्री कहा से उपलब्ध हो सकती है , तो मेरे भाइयों पारद क्रिया के लिए प्रमाणिक सामग्री का लगभग अकाल सा रहता है और बाजार में जो सामान मिलता है वो भी ओरिजनल हो ऐसी कोई ग्यारंटी नही है । और एक बातो सत्य है की यदि प्रमाणिक सामग्री नही मिल पाती तो क्रिया सफल नही हो सकती , इस लिए यदि आप में जिसे भी जो सामग्री चाहिए मुझे आप सूचित करियेगा मैं आपको वो सामग्री उपलब्ध करवाने का प्रयास करूँगा. क्यूंकि कुछ सामान तो हमारे देश में कम मात्र में ही सही मिलता है पर कुछ सामग्री का आयात बाहर से होता है , और जो सामान यहाँ मिलता है उसमे भी व्यापारियों की कुछ कारीगरी हो जाती है जिससे सामग्री के गुणों में न्यूनता आना स्वाभाविक है जैसे पारद में एक तो वैसे भी दोष होते हैं ऊपर से बाजार में व्यापारी उसमे अपने थोड़े से लाभ के लिए और ज्यादा , सीसा, रांगा, जस्ता, कैडियम , आदि मिला देते हैं और इन अशुद्ध धातुओं और तापान्तर के कारण बाजार में उपलब्ध पारद पूर्ण रूप से षंड हो जाता है अब चाहे कोई लाख सर पटके यह पारद वेधन कर ही नही सकता . लोग बाजार से पारा ले लेकर कीमिया की कोशिश करते रहते हैं न तो औषधि ही प्रमाणिक बन सकती है और न ही लोह वेध की क्रिया हो पाती है . कुछ ऐसा ही अन्य सामग्रियों के लिए भी होता है चाहे वो वज्राभ्रक हो, रक्त गंधक हो , कायम हरताल हो, श्वेत गुरु हो (जिसके द्वारा कैसी भी वनस्पति से रस और दूध निकाला जा सकता है) . एक बात तो तय है की यदि सामग्री प्रमाणिक हो तो क्रिया सफल होती ही है . यदि आप चाहेंगे तो अष्ट संस्कृत पारद (या फिर अलग अलग संस्कारों यथा पहला ,दूसरा संस्कार युक्त पारद ) भी मैं आपको उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा , मेरा उद्देश्य आपकी सफलता और इस विद्या का प्रसार है जिसमे मैं आपका सहयोग ही चाहूँगा .हालाँकि मुझे इस बात का बेहद दुःख है की इतनी दुर्लभ विद्या के लिए जो ग्रुप बनाया गया उसके कुल सदस्य ६ महीने में सिर्फ़ १६ ही हैं . मेरे एक आत्मीय मित्र की देवरंजिनी गुटिका भी उनके निर्देशानुसार मैंने बना कर रखी है पर उनका एड्रेस लाख प्रयास के बाद भी उपलब्ध नही हो पाया है , और न ही उन्हें मेरे मेल्स मिल रहे होंगे क्यूंकि यदि उन्हें मिलते तो वो कांटेक्ट जरूर करते. उनकी पूँजी मेरे पास संचित, सुरक्षित है. खैर आप लोगो को या आपके किसी मित्र को जिनकी रुचि पारद विज्ञानं में हो और वे इस पर मेहनत करके सकारात्मक परिणाम चाहते है तो आप सामग्री के लिए जरूर बताइयेगा . एक बात और की यहाँ पर बात क्रय-विक्रय की नही हो रही अपितु उपलब्धता की हो रही है , आप को सफलता मिले बस इसी कामना की सफलता के लिए सदगुरुदेव से प्रार्थना करता हूँ.

****आरिफ****

Wednesday, December 24, 2008

Sadgurudev aur प्रारब्ध

आधुनिक प्रबंध के दृष्टिकोण से किसी भी योजना के कार्यान्वन के लिए ५ मूलभूत बातें होनी जरूरी है : योजना की रूपरेखा, योजना का प्रबंधक, उपयुक्त उपकरण,कार्य पद्धति व सबसे महत्वपूर्ण बात है भाग्य . भाग्य पर ही योजना की सफलता तथा असफलता निर्भर करती हिया. इसका मतलब यह हुआ की उचित कर्म के साथ भाग्य का संयोजन सफलता देता है.

अष्टम स्थान का प्रयोग – पूर्व जन्म की वृत्ति, व्यवसाय आदि के लिए होता है .

कोई व्यक्ति इस संसार में कहा से आया है, ये जानने के लिए सूर्य या चन्द्र का द्रेश्कान देखा जाता है, इसमे गुरु स्वर्ग या उच्च लोको का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र व शुक्र पित्र्लोक या चन्द्र लोक का . सूर्य व मंगल इस अनित्य संसार का. बुध और शनि निम्न योनियों का.

इसी प्रकार गुरु का ६ ,७,८ ,१० में होना मृत्यु के बाद उच्च लोको की प्राप्ति का संकेत देता है. यदि ६, ७, ८ में कोई ग्रह न हो तो वहा के स्वामियों और उनके द्रेश्कानो को देखना चाहिए.

इस प्रकार वर्तमान जीवन का भी ज्योतिष शास्त्र में विवाचन किया गया है . यथा पूर्व जीवन के शापों का अध्यन करने के लिए एनी ग्रहों के साथ मांडी और ५ स्थान का प्रयोग होता है , उदाहरनार्थ यदि ऐसे शापों में सूर्य का योग हो तो पिता का शाप होता है , चन्द्र का योग होने पर माता का शाप, राहू का योग होने पर सर्प दोष होता है.

किसी भी बच्चे के जीवन के लिए पहले के ४ वर्ष माता के दुष्कर्मो के कारण, बाद के ४ वर्ष पिता के दुष्कर्मो के कारण और बाद के ४ वर्ष उसके स्वयं के दुष्कर्मो के कारण घटक हो सकते हैं.

प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का स्वरुप भी उसके पूर्वजन्म के कर्मो के आधार पर ही निर्धारित होता है. मृत्यु का यह स्वरुप कैसा भी हो सकता है.

अब प्रश्न यह उठता है की आख़िर हम इनसे कैसे बचे…

इसका सबसे सरल हल ये है की पूर्ण समर्पण भावः से गुरु चरणों में समर्पित हो जाया जाए , पर क्या यह सम्भव है? शायद नही क्यूंकि यहाँ भी हमारे बुरे कर्म हमारा पीछा नही छोड़ते . और हम सदगुरुदेव रुपी गंगा के समीप जाकर भी अवगाहन से वंचित ही रहते हैं . वर्तमान में शक्तिपात के रूप में अपनी दिव्व्य साधना शक्ति को प्रदान कर समस्त पापो व दोषों को भस्मीभूत कर देने वाले सद्गुरु के प्रति भी हम शंका से भरे रहते हैं . और यदि आप कहेंगे की ऐसा नही है तो मेरे भाई मुझे एक बात बताओ की यदि ऐसा नही है और आपने सदगुरुदेव से दीक्षा ली है तब भी आप परेशां क्यूँ हो , क्या आप दीक्षा के बाद एक मर्यादित जीवन जीते हैं .

वास्तव में हम लोगो में दो अलग अलग कारणों से दीक्षा लेने वाले व्यक्ति हैं:

जीवन की तीव्र झुलसन में छाँव की तलाश करते हुए अमृत पान के लिए गुरुदेव के चरणों में बीतना वाले औए किसी समस्या से परेशां होकर मात्र उसके हल के लिए दीक्षा लेने वाले. इसमे दूसरे कारण वालो के साथ दिक्कते ज्यादा हैं क्यूंकि उन्हें लगता है की दीक्षा ले ली बस अब सब ठीक हो जाएगा पर वो यह भूल जाते हैं की दीक्षा आपके उद्देश्यों के लिए मात्र आपका मार्ग प्रशस्त करती है , मंजिल तक पहुचने के लिए आपको साधना करते हुए पहुचना होता है , मतलब आप जितनी तल्लीनता के साथ साधना करोगे आपके कार्य में सफलता भी वैसी ही मिलेगी. सफलता मिलेगी इसमे कोई संदेह नही.

पहले कारण वालो के लिए कुछ कहना ही नही बचता क्यूंकि वे तो सदगुरुदेव की अंगुली थामकर लगातार गुरु निर्देशों का पालन करते हुए अपनी मंजिल के समीप पहुच ही जाते हैं और पहुचे भी क्यूँ नही आख़िर सदगुरुदेव ही उनकी मंजिल जो हैं. और ऐसे शिष्यों को सदगुरुदेव पूर्णता तक पहुचाते ही हैं.

जब हम पूर्ण समर्पण से दीक्षा ग्राहम करते हैं तो कैसा भी तंत्र परयोग , कैसा भी ग्रह दोष , कैसा भी पाप हमें आक्रान्त नही कर पाटा क्यूंकि गुरुमंत्र रुपी तलवार और साधना की धार से उस बढ़ा को समाप्त होना ही होता है.

मेरे भाइयों यह हमारा सौभाग्य है की आज भी हमारे बीच में वही परम्परा उपस्थित है , ऐसा न हो की कल गुरु देव का मानस ही बदल जाए और हम हाथ मलते ही रह जाए . यदि अब भी हम नही चेते तो अपनी प्रारब्ध की जकड में जकडे हुए फिर दुर्भाग्य शाली जीवन जियेंगे और अपने आप को कोसते रहेंगे. दीक्षा लेने के लिए बढिए क्यूंकि संशय युक्त रहे तो अवसर और सौभाग्य दोने ही निकल जायेंगे. अब मर्जी है आपकी आख़िर जीवन है आपका।

****आरिफ****

Monday, March 3, 2008

Alchemy is possible

AKSAR LOGO KE MAN ME YEH SANKA UTHTI HAI KI KYA PAARAD KE DWARA TAMBE,LOHE YA PAARE KO SONE(GOLD)ME CHANGE KIYA JA SAKTA HAI.YEH KRIYAHAMARE DESH ME PRACHIN KAAL SE RAHI HAI.PAARAD KE UPAR KUCHH JADI-BOOTIYON KI PRAKRIYA KO SAMPANN KAR USE SUDH KIYA JATA HAI,YE KRIYAYE SANSKAAR KAHLATI HAI,IS PRAKAR PAARAD (MERCURY)PAR 8 SANSKAAR KIYE JAATE HAI.ISKE BAAD PAARAD KO ABHRAK(MIKA) VA SULPHAR KE SAATH JARNA KAR KE USE AGNISTHAAYEE KIYA JATA HAI.SWARNAGRAAS KARNE BAAD PAARAD KI BHASM BANAYEE JATI HAI AUR ISKE BAAD TAMBE(COPER)YA LOHE KO LAALSURKH KARKE USKE UPAR BHASMA DAALI JAATI HAI.KRAAMAN HONE KE SAATH HI VEDH KRIYA SAMPANN HOTI HAI AUR TAAMBA YA LOHA GOLD ME CHANGE HO JAATA HAI.

YE BAATE KALPANA NAHI HAI BALKI AAJ BHI AISE LOG HAI JO PAARE KI MADAD SE SWARNA BANATE HAI.MAI KHUD IS VIDHA PAR LAST 22 YEARS SE RESEARCH KAR RAHA HOON.
AAP KO IS SUBJECT PAR KUCHH AUR JANKARI CHAHIYE TO AAP MUJHE MAIL KAR SAKTE HAIN.
A.K.NIKHIL